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Sunday, May 5, 2013

संदेसा ... 


कोई तो पहुचाये येह संदेसा मेरी सखी तक 
आंस मिलन की मनमे जगाये रखना मेरे आनेतक ..


वो कशिश, वो दीवानापन.. वो समर्पण
बस थोडासा सब्र करना इंतजार खत्म होनेतक !


वैसे तो मैं भी जी रहा हू एक ही उम्मीद पर
साथ होंगे हम तुम जल्दी ही सारी उम्र भर ..


आदमी जो बना हू ..
आसू दिखा नही सकता, छुपाये कबतक ?


दिन गुजर रहा हू ..
गम की आह भी न लाये, अपनी जुबांतक !!


-- संजय कुलकर्णी

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